Tuesday 28 January 2014

"श्री मद्-भगवत गीता"
के बारे में-

किसको किसने सुनाई?
उ.- श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सुनाई।

कब सुनाई?
उ.- आज से लगभग 7 हज़ार साल पहले सुनाई।

भगवान ने किस दिन गीता सुनाई?...
उ.- रविवार के दिन।

कोनसी तिथि को?
उ.- एकादशी

कहा सुनाई?
उ.- कुरुक्षेत्र की रणभूमि में।

कितनी देर में सुनाई?
उ.- लगभग 45 मिनट में

क्यू सुनाई?
उ.- कर्त्तव्य से भटके हुए अर्जुन को कर्त्तव्य सिखाने के लिए और आने वाली पीढियों को धर्म-ज्ञान सिखाने के लिए।

कितने अध्याय है?
उ.- कुल 18 अध्याय

कितने श्लोक है?
उ.- 700 श्लोक

गीता में क्या-क्या बताया गया है?
उ.- ज्ञान-भक्ति-कर्म योग मार्गो की विस्तृत व्याख्या की गयी है, इन मार्गो पर चलने से व्यक्ति निश्चित ही परमपद का अधिकारी बन जाता है।

गीता को अर्जुन के अलावा
और किन किन लोगो ने सुना?
उ.- धृतराष्ट्र एवं संजय ने

अर्जुन से पहले गीता का पावन ज्ञान किन्हें मिला था?
उ.- भगवान सूर्यदेव को

गीता की गिनती किन धर्म-ग्रंथो में आती है?
उ.- उपनिषदों में

गीता किस महाग्रंथ का भाग है....?
उ.- गीता महाभारत के एक अध्याय शांति-पर्व का एक हिस्सा है।

गीता का दूसरा नाम क्या है?
उ.- गीतोपनिषद

गीता का सार क्या है?
उ.- प्रभु श्रीकृष्ण की शरण लेना

गीता में किसने कितने श्लोक कहे है?
उ.- श्रीकृष्ण ने- 574
अर्जुन ने- 85
धृतराष्ट्र ने- 1
संजय ने- 40.

अपनी युवा-पीढ़ी को गीता जी के बारे में जानकारी पहुचाने हेतु इसे ज्यादा से ज्यादा शेअर करे। धन्यवाद  @machharvijay         twiter                   

Sunday 28 October 2012


गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द ..
गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत..

गुरु मेरा देऊ , अलख अभेऊ , सर्व पूज चरण गुरु सेवऊ
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत..

गुरु का दर्शन .... देख - देख जीवां , गुरु के चरण धोये -धोये पीवां..

गुरु बिन अवर नही मैं ठाऊँ , अनबिन जपऊ गुरु गुरु नाऊँ
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत..

गुरु मेरा ज्ञान , गुरु हिरदय ध्यान , गुरु गोपाल पुरख भगवान्
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत..

ऐसे गुरु को बल-बल जाइये .. आप मुक्त मोहे तारें..

गुरु की शरण रहो कर जोड़े , गुरु बिना मैं नही होर
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत..

गुरु बहुत तारे भव पार , गुरु सेवा जम से छुटकार
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत..

अंधकार में गुरु मंत्र उजारा , गुरु के संग सजल निस्तारा
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत..

गुरु पूरा पाईया बडभागी , गुरु की सेवा जिथ ना लागी
गुरु मेरी पूजा , गुरु गोविन्द , गुरु मेरा पार ब्रह्म , गुरु भगवंत..
એક ભાઈએ દૂરથી એક બોર્ડ થાંભલા પર ઊંચે લગાડેલું જોયું. તે પાસે ગયા, પરંતુ એ બોર્ડ પર લેખેલા અક્ષરો બહુ નાના હતા એટલે એમને બરાબર વંચાયું નહીં. છેવટે બોર્ડ વાંચવા એ ભાઈ થાંભલે ચઢી ગયા! ઉપર ચઢીને એમણે જોયું તો બોર્ડમાં એવું લખેલું કે ‘થાંભલો તાજો રંગેલો છે, અડકવું નહિ.’

Friday 19 October 2012

પણ એક સંબંધ જેમ જેમ ઘસાતો જાય છે તેમ તેમ એ ઊજળો થતો જાય છે. એ છે ગુરુ અને શિષ્યનો સંબંધ.જેમાં આત્મીયતા,વિદ્રતા,સહ્યતા,ચારિત્ર્ય અને વાત્સલ્ય ભાવ સાગરની જેમ ઘૂઘવાતો હોય છે. આપણા ધર્મમાં ગુરુની પરંપરા છે. આત્મા-પરમાત્મા,અગમ-નિગમ,આધ્યાત્મિકતા મારગે ભવપાર ઊતરે તેવી કમિક સમજ છે. પણ અહિં શાળામાં શિક્ષણ આપનાર શિક્ષક-ગુરુના સંબંધની વાત છે.કેટલાક શિક્ષકો પોતાની આગવી વિશેષતાઓને લીધે આપણા હ્દય પર અમીટ છાપ છોડી જતા હોય છે તેમની એકાદ શિખામણ જીવનને નવો રાહ ચીંધી ગઈ હોય- જીવન ઉન્નત અને બહેતર બન્યું હોય એવા વંદનીય ગુરુ- શિક્ષકનો સંબંધ ઊજળો અને વિસ્મરણીય હોય છે .

શિક્ષણમાં જાગૃતિ

શી ખબર કેવી ને કેટલી યોજનાઓ આવે છે. ખબર એટલી કે,શિક્ષણમાં જાગૃતિ લાવે છે. 
vijaymachhar.blogspot.com

Thursday 11 October 2012


ॐ का महत्त्व


सृष्टि के आरम्भ में सर्वप्रथम जो शब्द
उत्पन्न हुआ वह ॐ ही था
...
। सनातन धर्म
के समस्त श्लोक एवं मंत्र का आरम्भ
इसी एकाक्षरी मंत्र से होता है
। ॐ वह
सात्विक शक्ति है , जिसके जाप के समय
होने वाले स्पंदन से शरीर के अन्दर
व्याप्त सभी प्रकार के रोगाणुओ का नाश
हो जाता है ।

ॐ का बारम्बार उच्चारण
हमारे लिए कई प्रकार से
उपयोगी होता है ।

हमारे आसपास के
वातावरण को रमणीय बनाने एवं जीवन में
खुशहाली लेन के लिए भी इसका जाप और
ध्यान उपयोगी है ।

ॐ मंत्र का उच्चारण
शरीर में नयी उर्जा विकसित करता है
एवं शरीर के विभिन्न अंगो को स्पंदित
करता है ।

प्रणव मंत्र ॐ सृष्टि के आरम्भ
में सर्वप्रथम उत्पन्न हुआ एकाक्षरी मंत्र
है ।

प्र - अर्थात प्रकृति से उत्पन्न
संसार रूपी महासागर तथा प्रणव इसे
पार करने के लिए नाव के समान है ।


इसीलिए ओमकार को प्रणव कहते है ।


अक्षर का अर्थ जिसका कभी क्षरण न
हो ।

ऐसे तीन अक्षरोँ - अ उ और म से
मिलकर बना है ऊँ ।
माना जाता है
कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड से सदा ऊँ
की ध्वनी निसृत होती रहती है ।

हमारी और आपके हर श्वास ऊँ
की ही ध्वनि ही निकलती है ।

यही हमारे - आपके श्वास
की गति को नियंत्रित करता है ।

माना गया है कि अत्यन्त पवित्र और
शक्तिशाली है ऊँ । किसी भी मंत्रसे पहले
यदि ऊँ जोड़ दिया जाए तो वह
पूर्णतया शुद्ध और शक्ति - समपन्न
हो जाता है ।

किसी देवी - देवता , ग्रह
या ईश्वर के मंत्रोँ के पहले ऊँ
लगाना आवश्यक होता है ,

जैसे - श्रीराम
का मंत्र - ऊँ रामाय नमः

। विष्णु
का मंत्र - ऊँ विष्णवे नमः

। शिवका मंत्र
ऊँ नमः शिवाय प्रसिद्ध है ।


कहा जाता है कि ऊँ से रहित कोई मंत्र
फलदायी नही होता , चाहे
उसका कितना भी जाप हो । मंत्र के रूप
मेँ मात्र ऊँ ही पर्याप्त है ।


माना जाता है कि एक बार ऊँ का जाप
हजार बार किसी मंत्र के जाप से
महत्वपूर्ण है ।

जिनकी स्मरण
शक्ति कमजोर हो , पढाई में कमजोर
विद्यार्थी और अधिक दिमाग और
बोलचाल का करने वाले व्यक्तियों के लिए
यह सर्वोत्तम उपासना ह

ै । प्रात : काल
पूर्व दिशा की ओर मुह कर , ज्ञान
मुद्रा में बैठ कर अधर खुली आँखों से
केसरी रंग के महामंत्र ॐ का ध्यान
अपनी दोनों भौहो के बीच में करे ।

कम से
कम 108 बार इसी विधि से ॐ
का उच्चारण करे ।

इस उपासना से
बुद्धि का विकास होता है , वाणी प्रखर
होती है , ओजस्विता आती है ।

जाप के
बाद आँखों को धीरे से बंद कर ,
अपनी हथेलियों को रगड़कर समस्त चहरे
पर लगाने से अंग पुष्ट होते है एवं शारीर
में कांति आती है ।

जिनके यंहा धन
का आभाव हो , ऋण की अधिकता हो ,
दरिद्रता , व्यापार में हनी से परेशान
हो , धन रुकता नहीं हो तथा कोई कार्य
करने में बाधा आती हो , उन्हें पीले वस्त्र
धारण कर ॐ का ध्यान करना चाहिए ।

यह कार्य दिनभर में
कभी भी किया जा सकता है ।

किन्तु
सूर्योदय और सूर्यास्त के समय किया जाये
तो ज्यादा फलदायक होता है ।


प्रतिदिन 15 मिनिट तक यह जाप करने से
दरिद्रता और कामो में आने वाली रूकावटे
दूर होने लगाती है ।


ब्रह्माण्डका नाद है एवं मनुष्यके अन्तरमेँ
स्थित ईश्वरका प्रतीक

। सबके हृदयस्थ
इस ऊँ प्रतीक को बार - बार प्रणाम ।